अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी में परिवार के लोगों का दखल कम होता जा रहा है। उनमें पार्टी की छवि बदलने की छटपटाहट साफ देखी जा सकती है। उन्होंने परिवार के कई सदस्यों को यूपी चुनाव में टिकट देने से साफ इनकार कर दिया।
सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल के समय जहां पूरा कुनबा सियासत में तेजी से बढ़ रहा था, वहीं नई सपा में परिवारवाद पर ब्रेक लगता देखा जा रहा है। इससे लगता है कि सपा की छवि बदलने की छटपटाहट के साफ तौर पर अखिलेश यादव के अंदर देखी जा रही है। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव विधानसभा के चुनाव में परिवारवाद की छवि को मिटाने के लिए भरसक प्रयासरत है। इस समय अखिलेश यादव वन मैन शो की भूमिका में नजर आ रहे हैं।
मुलायम परिवार से अभी तक करहल से अखिलेश और जसवंत नगर से शिवपाल सिंह यादव चुनावी मैदान में अपना सिक्का आजमा रहे हैं। शिवपाल अपनी पार्टी प्रसपा के अध्यक्ष के तौर पर चुनावी मैदान में हैं जबकि उनकी पार्टी सपा के साथ गठबंधन में शामिल है। प्रसपा का चुनाव चिह्न जब्त होने की स्थिति में वह साइकिल के सिंबल के साथ मैदान में उतरेंगे।
हमने देखा है कि अन्य कई चुनावों में मुलायम परिवार का एक-एक सदस्य किसी न किसी विधानसभा क्षेत्र पर दावा करता नजर आता था, वहीं इस बार न तो परिवार के लोग चुनावी मैदान में नजर भी नहीं आ रहे हैं और न ही कोई रिश्तेदार। टिकट वितरण से लेकर सहयोगियों को लामबंद करने और सियासी रणनीति तैयार करने में अखिलेश एकला चलो की रणनीति पर काम रहे हैं।
सूत्रों का यह भी कहना है कि अभी तक परिवार के जो लोग टिकट दिलाने का दावा करते थे, वे भी अलग-थलग हैं। परिवार के लोगों को टिकट देने पर राजी न होने की वजह से ही मुलायम की बहू अपर्णा यादव व समधी हरिओम यादव को भाजपा का दामन थामना पड़ा।