Kumbh Mela 2025: संगम की रेती पर बनी कुंभ नगरी में साधु-संतों की रहस्यमयी दुनिया नजर आती है। कुंभ में आए हर बाबा की कोई न कोई खास कहानी है। कोई ई-रिक्शा वाले बाबा के नाम से मशहूर है, कोई हाथ योगी बाबा, कोई जानवर वाले बाबा तो कोई घोड़ा वाले बाबा के नाम से। यहां एक चाबी वाले बाबा भी हैं, जो एक हाथ में 20 किलो की लोहे की चाबी लेकर चलते हैं। इस भारी भरकम चाबी की कहानी भी रहस्यमयी है। लोग इन्हें रहस्यमयी चाबी वाले बाबा के नाम से जानते हैं। बाबा के पास एक रथ है, जिसमें सिर्फ चाबियां ही चाबियां नजर आती हैं। बाबा की हर चाबी की एक कहानी है।
50 वर्षीय चाबी वाले बाबा की खासियत यह है कि वे अपने रथ को हाथों से खींचते हुए पैदल ही पूरे देश में भ्रमण करते हैं। वे लोगों तक नए युग का दर्शन पहुंचा रहे हैं। चाबी वाले बाबा का असली नाम हरिश्चंद्र विश्वकर्मा है। वे उत्तर प्रदेश के रायबरेली के रहने वाले हैं। उनका कहना है कि हरिश्चंद्र विश्वकर्मा का बचपन से ही आध्यात्म की ओर झुकाव था।
घरवालों के डर से वह कुछ बोल नहीं पाते थे, लेकिन जब वह 16 साल के हुए तो उन्होंने समाज में फैली बुराइयों और नफरत से लड़ने का फैसला किया और घर छोड़ दिया। हरिश्चंद्र विश्वकर्मा कबीरपंथी विचारधारा के हैं, इसलिए लोग उन्हें कबीरा बाबा कहने लगे। अयोध्या से चलकर अब वह प्रयागराज कुंभ नगरी पहुंच गए हैं।
कबीर बाबा कई सालों से अपने साथ एक चाबी रखते हैं। उस चाबी से वे पूरे देश की पैदल यात्रा कर चुके हैं। अपनी यात्रा और आध्यात्म के बारे में बात करते हुए कबीर बाबा कहते हैं कि वे अपनी बड़ी चाबी से लोगों के मन में मौजूद अहंकार का ताला खोलते हैं। वे लोगों के अहंकार को चकनाचूर कर उन्हें नई राह दिखाते हैं। अब बाबा के पास कई तरह की चाबियाँ हैं। बाबा खुद अपने हाथों से चाबियाँ बनाते हैं। वे जहाँ भी जाते हैं, वहाँ एक चाबी अपने साथ यादगार के तौर पर रखते हैं।
चाबी वाले बाबा ने अपनी यात्रा साइकिल से शुरू की थी। अब उनके पास रथ है। बाबा इस रथ को अपने हाथों से खींचते हैं। बाबा ने जुगाड़ से इसके लिए एक हैंडल बनाया है, जिससे वे रथ को दिशा देते हैं। बाबा कहते हैं कि मेरी भुजाएँ मजबूत हैं, मैं इस रथ को खींच सकता हूँ। उन्होंने हज़ारों किलोमीटर की यात्रा की है। अब वे कुंभ नगरी पहुँच चुके हैं।
चाबी वाले बाबा स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श मानते हैं। उनका कहना है कि पूरी दुनिया आध्यात्म की ओर भाग रही है, लेकिन आध्यात्म कहीं बाहर नहीं, बल्कि भीतर ही है। अपनी चाबी के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि इस चाबी में आध्यात्म और जीवन का रहस्य छिपा है, जिसे वह लोगों को बताना चाहते हैं।
कबीरा बाबा कहते हैं कि इस चाबी का राज कोई नहीं जानना चाहता क्योंकि किसी के पास इसके लिए समय नहीं है। अगर वह किसी से कुछ कहते हैं तो लोग यह कहकर मुंह फेर लेते हैं कि बाबा मेरे पास खुले पैसे नहीं हैं। शायद लोगों को लगता है कि मैं उनसे पैसे मांग रहा हूं। कुंभ क्षेत्र में चाबी वाले बाबा जहां से भी गुजरते हैं, लोग चाबी का राज जानना चाहते हैं और उनके दर्शन करना चाहते हैं।