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जेलेंस्की नाटो में शामिल होने की जिद न करते, तो क्या होता?

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यूक्रेन के राष्ट्रपति वलाडिमीर जेलेंस्की अपने देश की सुरक्षा के लिए पश्चिमी देशों से करीबी बढ़ाने के लिए सैन्य संगठन नाटो में शामिल होने की कोशिशें कर रहे थे। क्योंकि, जो रूस पहले ही क्रीमिया और जॉर्जिया में जबरन घुस चुका हो। उससे बचने के लिए जेलेंस्की द्वारा किसी दूसरे विकल्प को खोजना काफी जरूरी था। लेकिन, ये विकल्प पश्चिमी देशों का सैन्य संगठन नाटो ही हो सकता है। तो, ऐसा मानना केवल वलाडिमीर जेलेंस्की की नासमझी ही कहा जा सकता है। क्योंकि, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के नाटो में शामिल होने को लेकर लगातार चेताया कि वलाडिमीर जेलेंस्की की कोशिशों को रूस किसी भी हाल में कामयाब नहीं होने देगा। इतना ही नहीं, पश्चिमी देशों के साथ जेलेंस्की की सैन्य संगठन नाटो में एंट्री पाने के लिए बातचीत तेज होने के साथ ही यूक्रेन की सीमाओं पर रूस के सैनिकों की भारी तैनाती शुरू हो गई थी। रूस ने मिसाइलों से लेकर कई घातक हथियार यूक्रेन की सीमा पर लगा दिए थे।

ऐसे हालात में जब वलाडिमीर जेलेंस्की को पता था कि यूक्रेन की कोई भी हरकत रूस को भड़का सकती है। उन्होंने पश्चिमी देशों की शह पाकर व्लादिमीर पुतिन को लेकर उकसावे वाले कई बयान दिए। जबकि, पुतिन लगातार यूक्रेन के राष्ट्रपति से कहते रहे कि ‘पश्चिमी देशों से दूरी बनाकर रखिए।’ लिखी सी बात है कि जो सैन्य संगठन नाटो सोवियत संघ के टूटने की वजह बना हो। उसे व्लादिमीर पुतिन अपने दरवाजे पर दस्तक देने वाला पड़ोसी क्यों बनाएंगे? इतना ही नहीं, एक ऐसा पड़ोसी जो पहले से ही अगल-बगल के कई घरों में बिना रोक-टोक के अपनी आवाजाही को सुनिश्चित कर चुका है। और, कहीं न कहीं रूस की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बनता जा रहा हो। तो, राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला जितना अहम यूक्रेन के लिए था, उतना ही जरूरी रूस के लिए भी था। अगर जेलेंस्की रूस के साथ ही अपने संबंधों को सुधारने की कोशिश करते, तो बहुत हद तक संभव था कि यूक्रेन के लिए कई मायनों में यह फायदेमंद रहता।

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