वेद व्यास जी ने वेदों का संपादन किया, सभी पुराणो और महाभारत की रचना की थी। उन्होंने एक बार सनतकुमार जी से पूछा, ‘मनुष्य को कभी-कभी तकलीफ उठानी पड़ती है, उसके आसपास का वातावरण ऐसा हो जाता है, जैसे नर्क हो। ऐसा क्यों होता है?’
सनतकुमार जी ने कहा, ‘चार प्रकार के पाप ऐसे हैं, जो अधिकतर इंसान करते हैं। मानसिक यानी मन ही मन किसी के लिए गलत सोच लेना। वाचिक यानी गलत बोलना, गंदी बातें कहना। शारीरिक यानी दूसरों के प्रति हिंसा करना। चौथा पाप है अपने माता-पिता, गुरु और बड़े लोगों की निंदा करना। इन चार पापों के अलावा एक और पाप है नशा करना, चोरी करना और सम्मानीय स्त्री के लिए गलत भावना रखना। जब-जब व्यक्ति ऐसे पाप करता है, तब-तब उसके परिणाम में व्यक्ति के आसपास का वातावरण इतना अशांत हो जाएगा कि जीवन उसे नर्क लगने लगता है।
सीख – व्यास के प्रश्न पर सनतकुमार जी ने जो बात कही है, उसका संदेश ये है कि हम अपने ही गलत कामों से अशांत रहते हैं। जब हम अच्छे काम करते हैं तो हमें शांति मिलती है यानी स्वर्ग मिलता है। जब हम गलत काम करते हैं तो अशांति मिलती है यानी हमें नर्क भोगना पड़ता है।