महगाई आम आदमी की उस मज़बूरी को बयां करता है, जहां उसके पास खाने के लाले पड़े हुए हैं। क्यों? जवाब है महंगाई या बढ़ी हुई कीमतें विशेषकर नार्मल सब्जियों की भी कीमते आसमान छू रही हैं। पेट्रोल-डीजल महंगा हो रहा है, तो समझा दिया जा रहा है कि यूक्रेन-रूस की सिर की लड़ाई का नतीजा है। लेकिन लौकी, भिंडी, टिंडे, कद्दू, परवल, तुरई, नींबू को क्या हो गया है? इनके दाम भी क्या ऑयल की तरह अंतर्राष्ट्रीय बाजार से तय हो रहे हैं? हालात काफी चिंताजनक हैं।
विषय बहुत सीधा है और यहां लाग लपेट का तो कोई कांसेप्ट ही नहीं है। एक ऐसे समय में जब पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, बिजली के बिल ने देश के मध्यम वर्गीय व्यक्ति की कमर तोड़ रहे हो उसे खाने के नाम पर लौकी, भिंडी, टिंडे, कद्दू, परवल, तुरई, नींबू, धनिया, मिर्च, टमाटर, गोभी इन्हीं सब चीजों का सहारा था। लेकिन जैसी परिस्थितियां आज बन रही हैं। ये चीजें भी उसकी थाली से गोल होते जा रहे हैं।
सरकार को समझना चाहिए कि सब्जियों की कीमत निर्धारित करना और इस लाइन से बिचौलियों को भगाना यूएन या किसी अंतर्राष्ट्रीय फोरम में ले जाने वाला मुद्दा नहीं है। ये कहना हमारे लिए अतिश्योक्ति नहीं है कि सरकार यदि चुस्ती दिखाए तो ये एक ऐसा मुद्दा है जिसका निपटारा कुछ ही देर में किया जा सकता है। और देश के आम आदमी को राहत दी जा सकती है। सरकार के चाह लेने भर की देर है सरकार चाह ले तो जल्द ही थाली में नींबू टमाटर का सलाद भी होगा और भिंडी, टिंडे, परवल और गोभी की सब्जी भी होगी। दिक्कत बस ये है कि सरकार चाह नहीं रही है और जनता में भी एक ठीक ठाक वर्ग को इसकी कोई परवाह नहीं है।