बैकडोर मैनेजमेंट के अलावा बीजेपी मंत्रियों और विधायकों की बगावत पर दो रास्ते अख्तियार किये जा रहे है। एक केशव प्रसाद मौर्य के जरिये। प्यार से। दूसरा सिद्धार्थनाथ सिंह जैसे नेताओं के माध्यम से। चले जाने वालों की अहमियत खारिज करके।
डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य नाराज नेताओं को मनाने की कोशिश में लगे हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान को लेकर भी मौर्य के ट्वीट एक जैसे ही रहे, लेकिन सिद्धार्थ नाथ सिंह ऐसे नेताओं के बीजेपी में रह कर मलाई खाने की बात कर रहे हैं। मुहावरे भी कई बार लिटरल लगने लगते हैं।
ये क्या बात हुई। बीजेपी में भी ऐसा होता है क्या? प्रधानमंत्री मोदी तो कहते हैं कि ‘न खाएंगे और न खाने देंगे’, तो क्या ये योगीराज का राज है? मलाई खाने का इंतजाम होने लगा था – ये लोग अगर मलाई खा रहे थे तो बीजेपी कर क्या रही थी?
योगी सरकार में मंत्री और सिद्धार्थ नाथ सिंह, ‘विधायकों के बीजेपी छोड़ने के कई कारण हैं… कुछ लोग निजी फायदे के लिए पार्टी छोड़ रहे हैं… कुछ लोगों को डर है कि उनकी पसंद की विधानसभा सीट से टिकट नहीं दिया जाएगा – इन लोगों ने पांच साल तक बीजेपी के साथ रहकर मलाई खाने का काम किया है।’
बीजेपी छोड़ने वाले विधायकों के पिछड़ों और दलितों का मुद्दा उठाने पर कहते हैं, ‘पिछड़ों और दलितों को गुमराह किया जा रहा है… बीजेपी छोड़ने वाले विधायक पिछड़ों और दलितों के लिए समाजवादी पार्टी द्वारा चलाई गई 10 योजनाओं के नाम बताकर देखें… समाजवादी पार्टी केवल मुसलमानों और यादवों के लिए काम करती है।’