amit shah with jaat

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अमित शाह ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं, अखिलेश के पास इसकी काट नहीं

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जाट भले नाराज हो, लेकिन यह सच्चाई भी है कि भाजपा के पास अभी भी जाटों का ठीकठाक आधार जुड़ा हुआ है। भले ही वह पार्टी के मजबूत जाट नेताओं की वजह से साथ हो। चुनाव की घोषणा से पहले ही कई जाट नेता जमीन पर महीनों से काम कर रहे हैं। जिन विधानसभा सीटों में संगीत सोम जैसे ताकतवर उम्मीदवार हैं वहां जाटों की नाराजगी का कोई मायने नजर नहीं आ रहा। एक बात साफ़ है- अमित शाह के बयान का तीर एक साथ दो दो निशाने भेद रहा है। वे जाट मतों के बंटवारे को लेकर लकीर खींच रहे हैं। उनके बयान का एक मकसद- जाटों को रालोद के साथ जाने, मगर सपा के साथ नहीं जाने देने को लेकर है तो दूसरा- मुसलमानों को कन्फ्यूज भी कर रहे हैं। उनका ऑफर जिस तरह आया है वह रालोद को मिलने वाले मुसलमान मतों को सशंकित कर सकता है। शाह का बयान और जाटों को लेकर उनकी हालिया कोशिश साफ़ साफ़ इशारा कर रही हैं कि यह राजनीतिक रूप से कितना महत्वपूर्ण है।

वैसे भी जाट लगातार आरोप लगाते आए हैं कि सपा सरकार में दंगों के दौरान अखिलेश सरकार मुसलमानों के साथ खड़ी रही। सपा को लेकर जाटों में नाराजगी है। किसान आंदोलन को छोड़ दिया जाए तो जाट दूसरे मुद्दों की वजह से भाजपा से सिम्पैथी रखते हैं। अभी भी जाट, मुसलमान पक्षधरता की वजह से सपा को शक की निगाहों से ही देखते हैं। अगर जाटों का वोट ट्रांसफर नहीं होता तो सीधा सीधा मतलब है कि सपा को नुकसान पहुंचेगा। दूसरा, चुनाव बाद लगातार जयंत चौधरी समेत तमाम छोटे दलों के पाला बदलने की चर्चा शुरू है। गोवा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और पूर्वोत्तर के राज्यों में भाजपा ने जिस तरह चुनाव बाद सरकारें बनाई हैं- वह भी इसे बल प्रदान करता दिख रहा है। पश्चिम में मुसलमान पहले से ही जयंत चौधरी को लेकर आशंकित हैं जो भाजपा के साथ रह चुके हैं। हो सकता है कि मुस्लिम मतों के फ्रंट पर रालोद को भी वैसा ही नुकसान उठाना पड़े जैसा जाट मतों के फ्रंट पर सपा को हो सकता है।

निर्णायक दौर में शाह ने जो मोहरा आगे बढ़ाया है सपा उसकी संवेदनशीलता को समझती है। शायद यही वजह है कि उसने जाटों में नाराजगी ना पनपे इसके लिए कई मुस्लिम बहुल सीटों पर भी मुस्लिम उम्मीदवार उतारने से परहेज किया। इसे पश्चिम की सियासी जमीन पर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बहुसंख्यकों की राजनीति का दबाव भी मान सकते हैं। यानी पश्चिम में जो राजनीतिक चक्रव्यूह दिख रहा है अभी भी उसपर सबसे तगड़ा नियंत्रण भाजपा का ही माना जा सकता है। अब सवाल है कि जहां जाट सपा को वोट नहीं करेंगे और जहां मुसलमान रालोद के साथ नहीं जाएंगे, उनके आगे क्या राजनीतिक विकल्प होंगे और फिर तस्वीर किस तरह बनेगी?

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